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विलाप और प्रार्थना 
दाऊद की प्रार्थना 
 १ हे यहोवा, कान लगाकर मेरी सुन ले, 
क्योंकि मैं दीन और दरिद्र हूँ। 
 २ मेरे प्राण की रक्षा कर, क्योंकि मैं भक्त हूँ; 
तू मेरा परमेश्वर है, इसलिए अपने दास का, 
जिसका भरोसा तुझ पर है, उद्धार कर। 
 ३ हे प्रभु, मुझ पर अनुग्रह कर, 
क्योंकि मैं तुझी को लगातार पुकारता रहता हूँ। 
 ४ अपने दास के मन को आनन्दित कर, 
क्योंकि हे प्रभु, मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूँ। 
 ५ क्योंकि हे प्रभु, तू भला और क्षमा करनेवाला है, 
और जितने तुझे पुकारते हैं उन सभी के लिये तू अति करुणामय है। 
 ६ हे यहोवा मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा, 
और मेरे गिड़गिड़ाने को ध्यान से सुन। 
 ७ संकट के दिन मैं तुझको पुकारूँगा, 
क्योंकि तू मेरी सुन लेगा। 
 ८ हे प्रभु, देवताओं में से कोई भी तेरे तुल्य नहीं, 
और न किसी के काम तेरे कामों के बराबर हैं। 
 ९ हे प्रभु, जितनी जातियों को तूने बनाया है, 
सब आकर तेरे सामने दण्डवत् करेंगी, 
और तेरे नाम की महिमा करेंगी*। (प्रका. 15:4) 
 १० क्योंकि तू महान और आश्चर्यकर्म करनेवाला है, 
केवल तू ही परमेश्वर है। 
 ११ हे यहोवा, अपना मार्ग मुझे सिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूँगा, 
मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूँ। 
 १२ हे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर, मैं अपने सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूँगा, 
और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूँगा। 
 १३ क्योंकि तेरी करुणा मेरे ऊपर बड़ी है; 
और तूने मुझ को अधोलोक की तह में जाने से बचा लिया है। 
 १४ हे परमेश्वर, अभिमानी लोग मेरे विरुद्ध उठ गए हैं, 
और उपद्रवियों का झुण्ड मेरे प्राण के खोजी हुए हैं, 
और वे तेरा कुछ विचार नहीं रखते। 
 १५ परन्तु प्रभु दयालु और अनुग्रहकारी परमेश्वर है, 
तू विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय है। 
 १६ मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; 
अपने दास को तू शक्ति दे*, 
और अपनी दासी के पुत्र का उद्धार कर। 
 १७ मुझे भलाई का कोई चिन्ह दिखा, 
जिसे देखकर मेरे बैरी निराश हों, 
क्योंकि हे यहोवा, तूने आप मेरी सहायता की 
और मुझे शान्ति दी है।