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संकट में सहायता के लिये पुकार 
प्रधान बजानेवाले के लिये शोशन्नीम राग में दाऊद का गीत 
 १ हे परमेश्वर, मेरा उद्धार कर, मैं जल में डूबा जाता हूँ। 
 २ मैं बड़े दलदल में धँसा जाता हूँ, और मेरे पैर कहीं नहीं रूकते; 
मैं गहरे जल में आ गया, और धारा में डूबा जाता हूँ। 
 ३ मैं पुकारते-पुकारते थक गया, मेरा गला सूख गया है; 
अपने परमेश्वर की बाट जोहते-जोहते, मेरी आँखें धुँधली पड़ गई हैं। 
 ४ जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे गिनती में मेरे सिर के बालों से अधिक हैं; 
मेरे विनाश करनेवाले जो व्यर्थ मेरे शत्रु हैं, वे सामर्थीं हैं, 
इसलिए जो मैंने लूटा नहीं वह भी मुझ को देना पड़ा। (यूह. 15:25, भजन 35:19) 
 ५ हे परमेश्वर, तू तो मेरी मूर्खता को जानता है, 
और मेरे दोष तुझ से छिपे नहीं हैं। 
 ६ हे प्रभु, हे सेनाओं के यहोवा, जो तेरी बाट जोहते हैं, वे मेरे कारण लज्जित न हो; 
हे इस्राएल के परमेश्वर, जो तुझे ढूँढ़ते हैं, वह मेरे कारण अपमानित न हो। 
 ७ तेरे ही कारण मेरी निन्दा हुई है*, 
और मेरा मुँह लज्जा से ढपा है। 
 ८ मैं अपने भाइयों के सामने अजनबी हुआ, 
और अपने सगे भाइयों की दृष्टि में परदेशी ठहरा हूँ। 
 ९ क्योंकि मैं तेरे भवन के निमित्त जलते-जलते भस्म हुआ, 
और जो निन्दा वे तेरी करते हैं, वही निन्दा मुझ को सहनी पड़ी है। (यूह. 2:17, रोम. 15:3, इब्रा. 11:26) 
 १० जब मैं रोकर और उपवास करके दुःख उठाता था, 
तब उससे भी मेरी नामधराई ही हुई। 
 ११ जब मैं टाट का वस्त्र पहने था, 
तब मेरा दृष्टान्त उनमें चलता था। 
 १२ फाटक के पास बैठनेवाले मेरे विषय बातचीत करते हैं, 
और मदिरा पीनेवाले मुझ पर लगता हुआ गीत गाते हैं। 
 १३ परन्तु हे यहोवा, मेरी प्रार्थना तो तेरी प्रसन्नता के समय में हो रही है; 
हे परमेश्वर अपनी करुणा की बहुतायात से, 
और बचाने की अपनी सच्ची प्रतिज्ञा के अनुसार मेरी सुन ले। 
 १४ मुझ को दलदल में से उबार, कि मैं धँस न जाऊँ; 
मैं अपने बैरियों से, और गहरे जल में से बच जाऊँ। 
 १५ मैं धारा में डूब न जाऊँ, 
और न मैं गहरे जल में डूब मरूँ, 
और न पाताल का मुँह मेरे ऊपर बन्द हो। 
 १६ हे यहोवा, मेरी सुन ले, क्योंकि तेरी करुणा उत्तम है; 
अपनी दया की बहुतायत के अनुसार मेरी ओर ध्यान दे। 
 १७ अपने दास से अपना मुँह न मोड़; 
क्योंकि मैं संकट में हूँ, फुर्ती से मेरी सुन ले। 
 १८ मेरे निकट आकर मुझे छुड़ा ले, 
मेरे शत्रुओं से मुझ को छुटकारा दे। 
 १९ मेरी नामधराई और लज्जा और अनादर को तू जानता है: 
मेरे सब द्रोही तेरे सामने हैं। 
 २० मेरा हृदय नामधराई के कारण फट गया, और मैं बहुत उदास हूँ। 
मैंने किसी तरस खानेवाले की आशा तो की, 
परन्तु किसी को न पाया, 
और शान्ति देनेवाले ढूँढ़ता तो रहा, परन्तु कोई न मिला। 
 २१ लोगों ने मेरे खाने के लिये विष दिया, 
और मेरी प्यास बुझाने के लिये मुझे सिरका पिलाया*। (मर. 15:23,36, लूका 23:36, यूह. 19:28-29) 
 २२ उनका भोजन उनके लिये फंदा हो जाए; 
और उनके सुख के समय जाल बन जाए। 
 २३ उनकी आँखों पर अंधेरा छा जाए, ताकि वे देख न सके; 
और तू उनकी कटि को निरन्तर कँपाता रह। (रोम. 11:9-10) 
 २४ उनके ऊपर अपना रोष भड़का, 
और तेरे क्रोध की आँच उनको लगे। (प्रका. 16:1) 
 २५ उनकी छावनी उजड़ जाए, 
उनके डेरों में कोई न रहे। (प्रेरि. 1:20) 
 २६ क्योंकि जिसको तूने मारा, वे उसके पीछे पड़े हैं, 
और जिनको तूने घायल किया, वे उनकी पीड़ा की चर्चा करते हैं। (यह. 53:4) 
 २७ उनके अधर्म पर अधर्म बढ़ा; 
और वे तेरे धर्म को प्राप्त न करें। 
 २८ उनका नाम जीवन की पुस्तक में से काटा जाए, 
और धर्मियों के संग लिखा न जाए। (लूका 10:20, प्रका. 3:5, प्रका. 20:12,15, प्रका. 21:27) 
 २९ परन्तु मैं तो दुःखी और पीड़ित हूँ, 
इसलिए हे परमेश्वर, तू मेरा उद्धार करके मुझे ऊँचे स्थान पर बैठा। 
 ३० मैं गीत गाकर तेरे नाम की स्तुति करूँगा, 
और धन्यवाद करता हुआ तेरी बड़ाई करूँगा। 
 ३१ यह यहोवा को बैल से अधिक, 
वरन् सींग और खुरवाले बैल से भी अधिक भाएगा। 
 ३२ नम्र लोग इसे देखकर आनन्दित होंगे, 
हे परमेश्वर के खोजियों, तुम्हारा मन हरा हो जाए*। 
 ३३ क्योंकि यहोवा दरिद्रों की ओर कान लगाता है, 
और अपने लोगों को जो बन्दी हैं तुच्छ नहीं जानता। 
 ३४ स्वर्ग और पृथ्वी उसकी स्तुति करें, 
और समुद्र अपने सब जीव जन्तुओं समेत उसकी स्तुति करे। 
 ३५ क्योंकि परमेश्वर सिय्योन का उद्धार करेगा, 
और यहूदा के नगरों को फिर बसाएगा; 
और लोग फिर वहाँ बसकर उसके अधिकारी हो जाएँगे। 
 ३६ उसके दासों को वंश उसको अपने भाग में पाएगा, 
और उसके नाम के प्रेमी उसमें वास करेंगे।